Sunday, 14 July 2013

यथार्थ बोध

माँ की हालत सुबह से ही काफी ख़राब थी, न गले से आवाज़ निकल पा रही थी और न हिलने-डुलने भर की ताकत ही थी। घर में मिलने आने वालों का तांता लगा हुआ था, पिता माँ के पास चुपचाप बैठे हुए थे, ज़माने भर की पीड़ा को अपने मुख पर समेटे हुए। बेटा अभी एक अबोध बालक है, विद्यालय से आते ही अपने हमजोलियों को इकठ्ठा करके खेलने निकल पड़ा। कुछ दिनों बाद उसका जन्मदिन आने वाला था। घर की हालत कुछ ख़ास अच्छी न थी पर माता-पिता की इच्छा थी कि बेटा पढ़-लिखकर खूब नाम कमाए।
बेटा अभी घर के बहार खेल ही रहा था कि सहसा कुछ रिश्तेदार उसे ज़बरन खींचकर घर के अन्दर ले आये। अभी उसका घर आने का मन न था, थोड़ी देर और खेलना चाहता था पर जब सुना कि माँ बुला रही है तो जिद छोड़ दी, फ़ौरन मान गया। माँ के पास जाते ही बड़े लाड़ से लिपट गया और बोल, "देखो, मैं विद्यालय से लौट भी आया और तुम्हे अभी तक सोना है? मुझको तो सोने नहीं देती देर तक? उठो माँ, भूख लगी।"
माँ के चेहरे पर फीकी सी एक मुस्कान उभर उठी। उसने हौले से एक छोटा सा तोहफा उठाया और बड़े अरमान से बेटे की तरफ देखते हुए उसकी नन्हीं-२ हथेलियों पर रख दिया। बेटे को समझ नहीं आया, इतनी सी चीज़ उठाने के लिए माँ को इतनी ताकत क्यों लगानी पड़ रही है, लेकिन वह अपना सवाल तोहफा पाने की ख़ुशी में भूल गया- "तुम्हें तो सब याद रहता है माँ। देखिये तो पिताजी, माँ ने मुझे क्या दिया है!" बेटे के चेहरे पर ख़ुशी देखने के बाद माँ ने अपनी आँखें धीरे से बंद कर लीं। घर में अचानक शोर होने लगा, बेटे की समझ में कुछ भी नहीं आया।
इस बात को अब काफी समय बीत चुका है। बेटा अब भी पहले की तरह शरारती है, विद्यालय में सबको खूब तंग करता है। नेहा को तंग करना तो उसे खूब भाता है। कभी उसकी चोटियाँ खींचता तो कभी उसकी कॉपी या पेन्सिल लेकर भाग जाता। नेहा बस चीखती-रोती रह जाती। आखिर उसे भी मौका मिला, उस बालक का पेंसिल बॉक्स एक दिन उसके हाथ में आया। वह बोली, "देखो! मेरी पुस्तक वापस कर दो वरना मैं इसे फेंक दूँगी।" बालक अपनी मस्ती में था, उसने नहीं सुना। नेहा ने फिर कहा, बार-२ कहा, कई बार कहा और आखिर वही किया जो वह कहती जा रही थी। एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ सारा सामान फर्श पर था। कक्षा में सन्नाटा छा गया, नेहा को लगा उसकी तो अब खैर नहीं। बालक आगे बढ़ा, नेहा सहम गयी, वह उसके करीब आया और चुपचाप अपना सारा सामान समेटने में लग गया। हैरानी की बात, हमेशा उत्पात मचाने वाला वह बालक अब एकदम शांत था।

Friday, 5 April 2013

Stranger (A 55 fiction)

It was a 'sudden' 'plan'. She had to take a sick leave from office and rush to her hometown. It was supposed to be just meeting a guy but it turned out to be her engagement.
When leaving, her mother, as always, asked her not to befriend any stranger during the journey. She only smiled.

Wednesday, 20 March 2013

ऐसा है कि…

*फिल्म: सोचा न था 

"मेरा ख्याल है कि अब हमें बच्चों को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ देना चाहिए। क्या कहती हैं बहनजी?"
"जी हाँ, बिलकुल!"
कमरे में अब सिर्फ दो ही लोग बचे हैं- सुनीति : उम्र २८ साल, घर की सबसे बड़ी बेटी, सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार और कमाऊ, सुशिक्षित, मध्यवर्गीय, दिखने में साधारण; विनय : उम्र ३२, साधारण कद-काठी, आय और शिक्षा।
बढती उम्र और पारिवारिक दबाव के मद्देनज़र सुनीति को इस रिश्ते के लिए हाँ करनी ही है, यह बात और है कि विनय उसके आगे कहीं नहीं ठहरता। सुनीति को अपने पंख खोलकर उड़ान भरना बहुत अच्छा लगता है लेकिन  स्त्री की जगह तो पिंजरे में ही है। उसे कुछ भी बोलने को मना किया गया है।
"आप नौकरी करती हैं, आपके तो कई पुरुष-मित्र भी होंगे?"
"जी, मगर उनसे सम्बन्ध पेशेवराना ही हैं।"
"कोई खास व्यक्ति आपके जीवन में?"
"जी नहीं।"
"चलिए, मैं अपनी बात करता हूँ। सिर्फ एक ही बुरी आदत है कि कभी-कभार पी लेता हूँ। अगर आपको परेशानी हो तो थोडा सह लीजियेगा। मुझे बच्चे भी अच्छे नहीं लगते, माफ़ी चाहता हूँ मगर उनकी ज़िम्मेदारी भी पूरी तरह आपको ही लेनी होगी। मेरे माता-पिता दिल से बहुत ही भले हैं, लेकिन कई बार गुस्सा संभाल नहीं पाते। ऐसे में, मैं चाहूँगा कि आप घर की बातें मुझे न ही बताएं। एक गर्लफ्रेंड थी, अब छोड़ चुका हूँ। हाँ, दोस्ती अब भी है। मेरे ख्याल से, सिर्फ दोस्ती से आपको कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। अब एक आखिरी बात, ऐसा कुछ नहीं है ज़िन्दगी में जो मैंने किया न हो।"
"आप बड़े ही ईमानदार व्यक्ति हैं।"
"अच्छी बात है कि आपने मुझे समझा। जहाँ तक मुझे लगता है, आपकी ओर से हाँ ही है। ये बात तो आपने बाहर सुन ही ली होगी कि हम आपसे नौकरी नहीं करवाएंगे, तो कल ही आप इस्तीफा दे दीजियेगा। कोई और बात जो आप बताना चाहें… "
"जी ऐसा है कि ऐसा कुछ नहीं है ज़िन्दगी में जो मैंने भी करना चाहा हो और किया न हो….."
विनय अवाक है, सुनीति के चेहरे पर हया की जगह गर्वीली मुस्कान है। विनय कमरे से बाहर जा चुका है।

Saturday, 9 March 2013

"You are of no use"

As soon as Rishabh opened the door and entered his manager’s room, the manager shouted at him “Rishabh, you are of no use.” Rishabh already knew that this is going to happen. He kept standing there like a puppet. The manager kept shouting at him for the next fifteen minutes, insulted him and returned him loading with more work. Rishabh kept listening to him and didn’t say a single word.
Insulted, irritated and tired Rishabh came back to home and asked his wife “What’s in the dinner?”
Baingan ka Bharta” His wife replied.
“What Baingan ka Bharta???” He shouted at his wife “Sunita, you are of no use.”

Sunday, 3 March 2013

Wait: A short love story



I was cursing myself that why I decided to join this really boring conference. Sitting at the last row of the conference, I was listening to all the speakers that were talking about some weird topics and everything was going over my head.
Intermittently I was looking around to find something interesting, but failed in my mission.
Suddenly my eyes fell on a girl, sitting a row ahead of mine.
“Holy Shit!!! Is it her?? I asked myself.
“No, that girl has some different hair color”
“But seems to be her”
“And she was a bit fatty kind of”
“May be she lost some weight”
I bent a bit ahead and tried to listen to her.
“I’m confused, voice is also the same”
I was in the same dilemma, suddenly she looked behind. It was her. I was stunned for a second. She recognized me and said hello with a cute smile. My heart skipped a beat. I too replied her with a smile.
For the three years of my graduation, I didn’t have courage to talk to her. I wanted to propose her. She was the most beautiful and intelligent girl of our class, and me, a mediocre student. May be that’s why I didn’t have guts to express my feelings.
For the next half an hour nostalgia grabbed my thoughts. I thought of every second I had seen her. Her giggling, her smile, her accent and even her tapping her tongue below her tooth when caught doing something crazy, I noticed everything at college. I think I was in love! But how had I said so? That courage never pulped in me. I would die on her single glare, forget about talking to her.
The moment the conference got over, she signaled me to meet her outside.
“So… how are you? Long time haan?” She asked me.
“Yea… I’m fine? And you?”
“Me too… so… what's up these days?” She said.
“Post graduation… here in this university”.
Often when lonely, I used to think about her. I used to wish that if she meets me in near future, I’ll say this, I’ll say that, I’ll tell her my true feelings, I'll hug her! but today when she was in front of me, I got speechless.
“So… came alone?” she asked with a wink.
“Yea… I've yet to get someone like you” I answered.
Actually I didn’t want to say this but don’t know how my feelings got out. But she… she just deferred the topic. I think she didn’t know that I actually meant it.
We just talked for two minutes, her friend called her. “I’m just coming.” She answered her friend.
She was going. I wanted to stop her, to behold her more. I wanted to take her address, her number to keep in touch. But once again, my courage betrayed me. And she had gone. I kept looking at her till she got out of my sight.
To express my feelings for her, I had to meet her again in future. I wished that it happens. And once again I kept on waiting for her for indefinite time. I think I knew that was the end to this untold love story.




Sunday, 17 February 2013

कहानी वाले की कहानी

ज्यादा पुरानी बात नहीं, एक शहर था, जहाँ कहानियाँ रहती थीं। 'कहानी शहर', हाँ, यही नाम था उसका। लम्बी कहानी, छोटी कहानी, मीठी कहानी, खट्टी कहानी, पतली कहानी, तो कोई मोटी कहानी, नयी कहानी, दादी-नानी वाली पुरानी कहानी, रूमानी कहानी, दुःख भरी कहानी, रंग-बिरंगी कहानी हर तरह की कहानी वहाँ रहती थी।

नुक्कड़ के हलवाई के यहाँ से 100 ग्राम जलेबी भी लानी हो, तो उसमें भी एक नयी कहानी जन्म लेती थी, हर बार। हमारे चचा कहा करते थे कि एक बार तो कल्लू हलवाई ने तीखी जलेबियाँ बना दी थीं, वजह कि उनकी प्यारी किट्टो  ने उस दिन ऊधम मचाया हुआ था। आपको यकीन नहीं हुआ न? मत कीजिये, आखिर कहानी ही तो है!

तो ऐसा था कहानी शहर का हाल। एक बार वहाँ एक बड़ी भयानक आग लगी। लोग यहाँ-वहाँ भागने लगे। जिसकी जो समझ में आया, अपनी उसी प्यारी चीज़ को ले वह भाग चला। इतनी भयंकर आग आखिर क्यूँकर लगी, ये हम आपको नहीं बताएँगे। बहरहाल, उस आग से कहानियों का एक गोदाम 'स्टोरी स्टोर' भी अछूता न रहा। वहां मौजूद काफी सारी कहानियां धूँ - धूँ कर जलने लगीं। स्टोरी स्टोर के मालिक 'स्टोरीवाला' ने बड़े मन से ये काम शुरू किया था। आखिर, कहानी शहर में कहानियों के बड़े अच्छे भाव मिलते थे, काफी फायदेमंद काम था। अपनी जान की परवाह किये बगैर, वो उस गोदाम में जा पहुँचा और जितनी कहानियाँ अपने साथ समेट सकता था, उन्हें लेकर भाग निकला।

नए शहर पहुँचकर जब उसने आजीविका के लिए नया काम शुरू करने की ठानी, तो उसे अपने पास मौजूद उन कहानियों का ध्यान आया। आखिर, और कुछ जानता भी तो नहीं था वो बेचारा! आज वही स्टोरीवाला दर-दर भटक रहा है। अगर आप यकीन करना चाहते हों, तो जान लें, 'मैं हूँ स्टोरीवाला (iamstorywala)' और आप सभी से कह रहा हूँ, "कहानी सुन लो!"