Sunday 17 February 2013

कहानी वाले की कहानी

ज्यादा पुरानी बात नहीं, एक शहर था, जहाँ कहानियाँ रहती थीं। 'कहानी शहर', हाँ, यही नाम था उसका। लम्बी कहानी, छोटी कहानी, मीठी कहानी, खट्टी कहानी, पतली कहानी, तो कोई मोटी कहानी, नयी कहानी, दादी-नानी वाली पुरानी कहानी, रूमानी कहानी, दुःख भरी कहानी, रंग-बिरंगी कहानी हर तरह की कहानी वहाँ रहती थी।

नुक्कड़ के हलवाई के यहाँ से 100 ग्राम जलेबी भी लानी हो, तो उसमें भी एक नयी कहानी जन्म लेती थी, हर बार। हमारे चचा कहा करते थे कि एक बार तो कल्लू हलवाई ने तीखी जलेबियाँ बना दी थीं, वजह कि उनकी प्यारी किट्टो  ने उस दिन ऊधम मचाया हुआ था। आपको यकीन नहीं हुआ न? मत कीजिये, आखिर कहानी ही तो है!

तो ऐसा था कहानी शहर का हाल। एक बार वहाँ एक बड़ी भयानक आग लगी। लोग यहाँ-वहाँ भागने लगे। जिसकी जो समझ में आया, अपनी उसी प्यारी चीज़ को ले वह भाग चला। इतनी भयंकर आग आखिर क्यूँकर लगी, ये हम आपको नहीं बताएँगे। बहरहाल, उस आग से कहानियों का एक गोदाम 'स्टोरी स्टोर' भी अछूता न रहा। वहां मौजूद काफी सारी कहानियां धूँ - धूँ कर जलने लगीं। स्टोरी स्टोर के मालिक 'स्टोरीवाला' ने बड़े मन से ये काम शुरू किया था। आखिर, कहानी शहर में कहानियों के बड़े अच्छे भाव मिलते थे, काफी फायदेमंद काम था। अपनी जान की परवाह किये बगैर, वो उस गोदाम में जा पहुँचा और जितनी कहानियाँ अपने साथ समेट सकता था, उन्हें लेकर भाग निकला।

नए शहर पहुँचकर जब उसने आजीविका के लिए नया काम शुरू करने की ठानी, तो उसे अपने पास मौजूद उन कहानियों का ध्यान आया। आखिर, और कुछ जानता भी तो नहीं था वो बेचारा! आज वही स्टोरीवाला दर-दर भटक रहा है। अगर आप यकीन करना चाहते हों, तो जान लें, 'मैं हूँ स्टोरीवाला (iamstorywala)' और आप सभी से कह रहा हूँ, "कहानी सुन लो!"



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